प्राचीन भारत के विषय में संपूर्ण विशेष जानकारी
भारतीय इतिहास को पढ़ने के लिए हम तीन भागों में इसका विभाजन करते हैं सर्वप्रथम १.प्राचीन भारत
२.मध्यकालीन भारत तथा
३.आधुनिक भारत।
सबसे पहले हम प्राचीन भारत का अध्ययन करेंगे प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा भी विस्तार पूर्वक करेंगे। प्राचीन भारत के इतिहास की विषय सामग्री को समझने योग्य बनाने के लिए काल खंड का निर्धारण करना अति आवश्यक है।
सर्वप्रथम प्राचीन इतिहास का विभाजन जेम्स-टाॅमासन द्वारा किया गया । जेम्स टॉमासन डेनमार्क पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष थे इन्होंने ही सर्वप्रथम प्राचीन इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया -
१.पाषाण काल
२.कांस्य कॉल
३.लोह काल
इसके पश्चात जॉन लुब्बाक महोदय ने 1865 में अपनी एक पुस्तक Pre Historic Time में प्राचीन इतिहास को दो भागों में बांटा-
१. पाषाण काल
२.नवपाषाण
नवपाषाण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग भी लुब्बाक महोदय द्वारा ही किया गया था। परंतु प्राचीन इतिहास को समझने में कोई खास सुविधा नहीं हुई। फिर अन्य इतिहासकारों द्वारा प्राचीन इतिहास की सामग्री का पुन: काल खंडो में विभाजन किया गया और इन्हीं काल खंडों के अनुसार हम प्राचीन भारत का अध्ययन करते हैं।
इसे समझने के लिए सर्वप्रथम इतिहासकारों ने इसे तीन भागों में विभाजित किया
१.प्रागैतिहासिक काल
२.आधऐतिहासिक काल
३.ऐतिहासिक काल
* प्रागैतिहासिक काल - क. पाषाण काल
ख. धातु काल
* आधऎतिहासिक काल- क. सिंधु घाटी सभ्यता या कांस्य युग
ख. वैदिक सभ्यता
* ऐतिहासिक काल - क. लोह युग तथा 600 बीसी के बाद का समय।
तीनों कालों का अध्ययन हम एक-एक करके विस्तार पूर्वक करेंगे सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक काल की चर्चा करते हैं। प्रागैतिहासिक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग डेनियल विल्सन ने किया था तथा प्रागैतिहासिक काल से तात्पर्य है ऐसा काल अथवा समय जिसके हमारे पास केवल पुरातत्व अवशेेष है कोई भी लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैैै। प्रागैतिहासिक काल की कला एवं संस्कृति को ही पाषाण संस्कृति कहा जाता है क्योंकि इस सभ्यता की जानकारी के लिए हमारे पास केवल पाषाण या पत्थर के बने उपकरण ही उपलब्ध हैै इस कारण मानव जीवन पूर्णता पत्थरों पर ही निर्भर था। मानव पत्थर की गुफाओं मेंं रहता पत्थर के औजार या उपकरण बनाता
व इन्हीं की सहायता से जीवन यापन करता।
भारत के प्रागैतिहासिक पुरातत्व का जनक राॅबर्ट ब्रूस फुट को माना जाता है क्योंकि इन्होंने ही 30 मई 1863 को पल्लवपुरम मद्रास से एक हस्त कुल्हाड़ी प्राप्त की जो प्रागैतिहासिक काल के पुरापाषाण काल की बताई गई है। प्रागैतिहासिक काल अंतर्गत पाषाण काल को हम इसे पुुुनः तीन भागो में बांटा गया है ।
१. निम्न पुरापाषाण काल
२.मध्य पुरापाषाण काल
३.उच्च पुरापाषाण काल
पुरापाषाण काल - इस काल में मनुष्य ने आग का आविष्कार किया परंतु आग का उपयोग वह नहीं जानता था। यह काल पूर्ण रूप से भोजन के संग्रहण पर आधारित था तथा इस काल का मनुष्य शिकारी था और औजार पत्थर से बनाए गए थे।
पुरापाषाण काल के अंतर्गत हम सबसेेे पहले निम्न फिर मध्य पाषाण काल तथा अंत उच्च पुरापाषाण काल के विषय में पढ़ेंगे।
निम्न पुरापाषाण काल - किस काल के अवशेष सोहन नदी घाटी वह मद्रास पल्लवपुरम से प्राप्त होते हैं। अर्थात उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत दोनों से इस सभ्यता के अवशेष मिलते है ।
इस सभ्यता में पूर्णता पत्थरों का ही उपयोग होता था तथा बने उपकरण भी पत्थरों के ही हैं जैसे मद्रास पल्लवपुरम से पत्थर से बनी एक हस्त कुल्हाड़ी प्राप्त हुई है तथा दक्षिण भारत मैं पोतवा के पठार में जब उत्खनन कार्य किया गया तो डी.एन. वाडिया के द्वारा यहां से चौपर, चापिंग उपकरण खोजे गए इसलिए डी.एन वाडिया को सोहन घाटी का पिता भी कहा जाता है क्योंकि इन्होंने ही इस घाटी में उत्खनन कार्य किया था।
इन उपकरणों में प्रयोग हुआ पत्थर क्वार्टर जाइट था। ऊपर बताए गए तीनों कालों में महत्वपूर्ण एवं अंतर करने योग्य चीजें इन कालो के उपकरण हैं व उनकी बनावट है इसलिए हम तीनों कालों के उपकरणों व उनकी बनावट में अंतर का अध्ययन करेंगे।
निम्न पुरापाषाण काल -
पत्थर - क्वार्टजाइट
उपकरण- हैंड एक्स, चौपर , चापिंग, ब्यूरिन, , स्क्रैपर, पेबुल ।
मध्य पुरापाषाण काल-
पत्थर- क्वार्टजाइट, फ्लिट, जैस्पर।
उपकरण - हैंड एक्स, चौपर, चापिंग, ब्यूरिन, , स्क्रैपर , पेबुल , फलक ।
उच्च पुरापाषाण काल -
पत्थर - क्वार्टरजाइट, जैस्पर, फ्लिट, कैलसीडोसी।
उपकरण - चापर , चांपिग, हैंड एक्स, बयूरिन, स्क्रैपर, पेबुल, फलक, ब्लेड।
Comments
Post a Comment