मध्य पाषाण काल
मध्य पाषाण काल के विषय में सर्वाधिक जानकारी सर्वप्रथम 1867 ईस्वी में मिली। सी.एल. कारलाइल ने सर्वप्रथम विंध्य क्षेत्र से लघु पाषाण उपकरण खोजें।
मध्य पाषाण काल को पुरापाषाण काल नवपाषाण काल व मध्य का काल अर्थात संक्रमण काल भी कहा जाता है। इतिहासकारों का मत है कि धीरे धीरे तापमान में वृद्धि होने से जलवायु परिवर्तन हुआ जिससे मानव जीवन, पेड़ पौधे वनस्पति व जीव जंतुओं में भी परिवर्तन आया।
इस काल में औजार बनाने की तकनीकी में परिवर्तन हुआ और छोटे औजारों का उपयोग होने लगा जिन्हें माइक्रोलिथ कहा गया। मनुष्य वैसे तो शिकारी वह संग्रहकर्ता ही रहा परंतु शिकार करने की तकनीकी में परिवर्तन हो गया।
औजार
मध्य पाषाण काल में औजार छोटे होने लगे औजारों की लंबाई 1 से 8 सेंटीमीटर थी तथा नवपाषाण काल के औजार ज्यामितीय आकार के थे।
१. ब्लेड - इसकी लंबाई चौड़ाई से से दुगुनी
तथा इसे बनाने की तकनीक फ्लूटिंग कहलाती।
२. नुकीला औजार - यह एक प्रकार का तिकोना ब्लड होता था इसके दोनोंं सिरे ढलवा तथा धारदार होते थे कुछ आकृतियों में इसे सरल रेखीय तथा वक्र रेखीय भी दिखाए गए हैं
३. त्रिकोण - इसके एक सिरे को धारदर बनाया जाता था तथा इसे तीर के अगले भाग में इस्तेमाल किया जाता था।
४. नव चंद्राकार औजार - यह भी एक तरह का ब्लेड होता था लेकिन इसका एक सिरा नुकीला होता था।
५. समलंब औजार - इसमें 1 से अधिक सिरे होते थे।
मध्य पाषाण कालीन स्थल
१. सराय नाहर - यह उत्तर प्रदेश केे प्रतापगढ़ जिलेेे में स्थित है आवासीय क्षेत्र के अंदर ही बेलनाकार गड्ढों मेंं मानव शवाधानो के साक्ष्य मिले हैंं । यहांं से नर पुरुष कंकाल चार महिला कंकाल भी मिलेे हैंं।
२. महदहा - यह भी प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में ही है। दो कब्र जिसमें स्त्री-पुरुुुुुष को साथ दफनाया गया है अर्थात युगल शवाधान ।
हड्डी के तीर व अंगूठी।
मॄग सींग के छल्लो की माला।
३. दमदमा - यहां से 41 कब्रे प्राप्त हुई है।
हाथी दांत का लटकन भी मिला है।
४. चोपानी मांडो - यहांं से उपकरणों के अलावा झोपड़ियों केेे प्रमाण मिले हैं।
५. आदमगढ़- यह मध्ययप्रदेश के होशंगाबाद जिले मैं है। इसका उत्खनन आर. वी. जोशी ने किया यहां से लगभग 25000 लघु पाषाण उपकरण मिले हैं ।
६. भीमबेटका- यहांं से पुरापाषाण काल तथाा मध्यपाषाण काल के नर कंकाल मिलेे हैंं। एक बच्चेेेे के कंकाल के गले से ताबीज भी मिला है जो जादू टोने का प्रतीक है।
७. बागोर - यह राजस्थान के भीलवाड़ा जिलेे में हैं इसका उत्खनन कार्य वी. एन. मिश्रा ने किया।
यहां से सबसे पहले पशुपालन के साक्ष्य मिले हैं।मध्य पाषाण काल के उपकरणों के अतिरिक्त यहां से कुछ लोह उपकरणो के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं।
८. सांभर -यह भी राजस्थान में हैै तथा यहांं से प्राचीनतम वनस्पति एवं सबसे पुराने वृक्षारोपण के साक्ष्य मिलेे हैं।
९. लांघनाज- यह गुजरात में है तथा इसका उत्खनन कार्य एच.डी. सांकलयान वी. सुब्रमण्यम तथा ए. आर. कनेडी द्वारा किया गया।
यहां से पशुओं की कब्र , 14 मानव कंकाल सर्वाधिक उपकरण तथा हड्डी व बर्तन प्राप्त हुए हैं।
१०. पैसरा- यह कर्नाटक में है तथा यहांं सेे 105 मीटर लंबा मध्य पाषाण कालीन चबूतरे के साक्ष्य मिले हैं।
११. सुंदरगढ़ - यह पश्चिम उड़ीसा में है तथा यहां से 55 शैैल चित्र प्राप्त हुए हैं ।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य स्थल भी महत्वपूर्ण है जैसे आंध्र प्रदेश में नागार्जुन कोंड रेणिगुंटा । मध्य
प्रदेश में खरवार जावरा कथोतिया लखजोवा आदि स्थानों से शैल चित्र प्राप्त हुए हैं।
लेखा मोड़ा नामक स्थान से 12 गुफाओं के साक्ष्य मिले हैं।
विंध्य पर्वत क्षेत्र मिर्जापुर में लिखया
जगह से 17 नर कंकाल प्राप्त हुए हैं तथा मोहराना बगली घोर आदि महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल है।
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